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Description
“ मैं एक आधा अधूरा हूं “ नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि धरती पर कोई भी इंसान पूर्ण नहीं है ! उसमें अधूरापन का लक्षण जन्मजात प्राप्त हुआ है, और वह अपने जीवन के हर मोड़ पर यही साबित करता है, मैं सचमुच आधा अधूरा हूं, और रहूंगा भी, क्योंकि मैं इस सृष्टि का, प्रकृति द्वारा रचित सर्वशक्तिमान की अनमोल रचना मानव हूं ! मनुष्य के जीवन में अक्सर ये देखा जाता है कि जब कोई एक कार्य में व्यस्त रहता है, उसे पूर्ण किये बिना दूसरे कार्यों में लग जाता है। दूसरा कार्य भी पूर्ण नहीं हुआ, उसे वह बीच मझधार में छोड़कर आगे बढ़ता जाता है। वह पूर्णता की खोज में भटकता रहता है, लेकिन जो उसे मिलता है, वह खालीपन लिए आधा अधूरा ही मिलता है। नागेश सू शेवालकर द्वारा रचित ये पुस्तक “ मैं एक आधा अधूरा हूं “ ये दिखा रही है, धरती पर जो भी आया है, वह पूर्ण नहीं है और नहीं वह पूर्ण बन सकता है। वह अधूरा है और अधूरा रहेगा। कथाकार अपनी अनेकों जीवंत कहानियों के माध्यम से ये साबित करता है, सब आधा अधूरा है। आधा अधूरा का गुण केवल मानव में ही नहीं है। इस सृष्टि के सभी प्राणियों में है। मनुष्य रिश्तों में बंधा है। रिश्तों से, समाज का ताना-बाना तैयार होता है। प्रेम की झूठी बुनियाद पर समाज का सृजन होता है। हम ये भी कह सकते हैं कि दो आत्माओं के आधे अधूरे मिलन से मायावी संसार में जिस जीव की उत्पत्ति हुई है, वह भी अधूरापन लिए ही यहां आया है। प्रेम के भूखे सब होते हैं। चाहे मानव हो, पशु पक्षी हो, लेकिन उसका प्रेम भी आधा अधूरा ही साबित होता है। वह पूर्ण नहीं बन पाता।