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Description
संस्कृत वाङ्मय में सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषशास्त्र की उत्पत्ति ब्रह्मा से ही हुई है। यह लोकप्रसिद्ध है। इस जगत् के पितामह ब्रह्मा हैं और उन्होंने यज्ञ साधना के निमित्त अपने चारों मुखों से चारों वेदों का सृजन किया। इससे यह प्रमाणित होता है कि वेद यज्ञ के लिए हैं। वे यज्ञकाल के आश्रय होते हैं। उस काल की सिद्धि के लिए तथा काल का बोध कराने के लिए ब्रह्मा ने ज्योतिषशास्त्र का निर्माण कर सर्वप्रथम नारद को सा। नारद ने इस शास्त्र के महत्त्व को स्वीकार करके इस लोक में प्रवर्तित किया। मतांतर से यह बात भी श्रुतिगोचर है कि सर्वप्रथम सूर्य ने ज्योतिषशास्त्र को मयासुर को दिया था। उसके बाद इस जगत् में ज्योतिषशास्त्र प्रवर्तित हुआ। भारतीय विद्याओं में ज्योतिषशास्त्र की महिमा अनुपम है। वेद के छह अंगों के मध्य में इस ज्योतिषशास्त्र की गणना की जाती है। प्राचीनकाल से लेकर आज तक ज्योतिषशास्त्र के अनेक आचार्य हुए, जिन्होंने न केवल भारतीय समाज में अपितु संपूर्ण विश्व में इस शास्त्र की प्रतिष्ठा एवं विवेचना की। नारद और वसिष्ठ के बाद फलित ज्योतिष के विषय में महर्षि पद को प्राप्त करनेवाला पाराशर को ही माना जाता है, क्योंकि कलियुग में पाराशर स्मृति ही श्रेष्ठ है। महर्षि पाराशर के ग्रंथ ज्योतिषशास्त्र के जिज्ञासुओं के लिए यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी है।